जी हां, गूगल ट्रेंड की मानें तो बीते रविवार और सोमवार की सुबह भारत के लोग सबसे ज़्यादा यही सर्च कर रहे थे कि क्या वैक्सीन घर पर बनाना संभव है! आपको यह भी बातएं कि यह सर्च ट्रेंड में पहली बार नहीं आई. इससे पहले जुलाई 2020 में भी सर्च ट्रेंड में यही सवाल बना हुआ था. लेकिन इसका जवाब क्या है? सिर्फ नहीं कह देने से तसल्ली नहीं मिलती इसलिए इसका विज्ञान और तर्क जानिए.
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क्यों की जा रही है इस तरह की सर्च?जबकि चीन के साथ सीमा पर विवाद और वैक्सीन को लेकर और भी तमाम बड़ी खबरें बनी हुई हैं, ऐसे में इस सर्च का क्या मतलब निकलता है? अचानक भारतीयों के बीच यह सर्च इतनी पॉपुलर कैसे हो गई? अस्ल में, इसके पीछे इस तरह की कुछ खबरों का होना मामना जा रहा है, जिसमें बताया गया कि कुछ विशेषज्ञ ‘डू इट योरसेल्फ’ यानी DIY वैक्सीन को लेकर काम कर रहे हैं.

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क्या सिर्फ भारत में ही है यह सवाल?
नहीं. पिछले साल अमेरिका के करीब 20 वैज्ञानिक इसलिए सुर्खियों में आए थे क्योंकि उन्होंने डीआईवाय नैज़ल वैक्सीन बनाई थी और खुद पर ही उसका टेस्अ भी कर डाला था . इस वैक्सीन को कोरोना वायरस में पाए जाने वाले प्रोटीन और शेलफिश में पाए जाने वाले शुगर पार्टिकल को मिलाकर तैयार किया गया था. लेकिन नतीजा क्या निकला? ऐसा कोई सबूत नहीं मिला कि इस तरह की वैक्सीन कारगर साबित हुई हो.
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इतना ही नहीं, नासा के पूर्व वैज्ञानिक जोसैया ज़ैनयर ने भी घर पर ही डीएनए वैक्सीन बनाने की कोशिश की थी. उन्होंने लाइव स्ट्रीमिंग कर घर पर किए गए अपने प्रयोग के बारे में बताकर यह भी दावा किया था कि उन्होंने खुद पर टेस्ट भी किया. लेकिन इस वैक्सीन के नतीजे को लेकर भी बात आगे नहीं बढ़ी.
इसके बाद से साफ तौर पर कहा गया कि डीआईवाय वैक्सीन जैसी कोई चीज़ नहीं है और न ही कोई देश इस तरह के किसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है.
क्या मुमकिन है घर पर वैक्सीन बनाना?
एक शब्द में जवाब है, नहीं. अगर आप बायोटेक एक्सपर्ट हैं तो भी अपने घर पर वैक्सीन बनाना तारे तोड़ लाने से कम नहीं. एक सुरक्षित, कारगर और लंबे समय के लिए सही नतीजों वाली वैक्सीन बनाने के लिए अव्वल तो नॉलेज और विशेषज्ञता चाहिए होती है और इसके साथ ही, हज़ारों लोगों पर ट्रायल करने से पहले सरकारी मंज़ूरी जैसी प्रक्रियाएं भी होती हैं, तो कुल मिलाकर अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता.
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कैसे बनती है वैक्सीन?
वैक्सीन बनाने के लिए कई तरह की अप्रोच और प्रणालियां अपनाई जाती हैं. आपको कुछ प्रचलित तरीकों के बारे में बताते हैं, जिन पर दुनिया की ज़्यादातर कारगर एंटी कोविउ वैक्सीनें बनाई गई हैं.
1. वायरस को कमज़ोर करना: इस तरकीब से बनाई गई वैक्सीन शरीर के भीतर वायरस को एक तरह से काफी हद तक बेअसर कर देती है. खसरा, रुबेला, रोटावायरस और ओरल पोलियो के मामलों में इसी टेक्निक से वैक्सीनें बनी थीं.

गूगल ट्रेंड दर्शाती तस्वीर
2. वायरस को निष्क्रिय करना: केमिकल के ज़रिये इस टेक्निक से वायरस को खत्म या फिर पूरी तरह निष्क्रिय किया जा सकता है. पोलियो, हेपेटाइटिस ए, इन्फ्लुएंज़ा और रैबीज़ आदि के लिए बनीं वैक्सीनें इस टेक्निक पर आधारित थीं.
3. वायरस पार्ट का इस्तेमाल: इस तरकीब से जो वैक्सीनें बनती हैं, उनमें वायरस के किसी एक पार्ट को हटाकर उसे वैक्सीन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है जैसे हेपेटाइटिस बी, शिंगलेस और एचपीवी की वैक्सीनों के सिलसिले में हुआ था.
4. जेनेटिक कोड टेक्निक: इस तकनीक से जो वैक्सीन बनती है, उसमें जिस व्यक्ति को टीका दिया जाता है , उसके शरीर में वायरस का एक हिस्सा दवा की तरह काम करता है. कोविड 19 के केस में इस टेक्निक से वैक्सीनें बनाई गई हैं, जो डीएनए, एमआरएनए या वेक्टर वायरस तरकीब पर आधारित हैं.
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इनके अलावा बैक्टीरिया के पार्ट के इस्तेमाल से भी वैक्सीनें बनाई जाती रही हैं, लेकिन उसका ज़िक्र यहां ज़रूरी नहीं है. विशेषज्ञों की मानें तो वैक्सीन डेवलपमेंट के लिए एक कंट्रोल्ड स्थितियों वाली प्रयोगशाला के साथ ही कई किस्म के विशेषज्ञ और उपकरणों की ज़रूरत पड़ती है. फिर इससे जुड़ी प्रशासनिक कवायदें तो हैं ही.